Thursday, May 8, 2014

नई क़लम का पुनः प्रकाशन ( हार्ड कॉपी )


नई क़लम - उभरते परिवार की ख़ुशी आप सब के साथ बाँट रहा हूँ... 14 साल पहले मैंने और मेरे अजीज़ दोस्त दीपक मशाल ने इस पत्रिका को निकाला था..हुआ यूँ , इंजीनियरिंग के चक्कर में मुझे मेरठ जाना पड़ गया और दीपक को. दिल्ली वैज्ञानिक होने के लिए..... उस वक़्त एक अंक निकल पाया फिर गाड़ी.. रुक गयी...

लेकिन साहित्य के लगाओ को कभी भी कम न कर पाया या यूँ कहें न हुआ. होना भी नहीं चाहिए था.. सुकून जो मिलता था, मिलता है.... तो उस सुकून को हम दोनों ने नई कलम- उभरते हस्ताक्षर ब्लॉग बनाकर ये सिलसिला चलता रहा ...आप सब लेखक मित्रों की रचनाएं समय- समय पे मिलती रहीं... और हम उसे नई कलम के मंच पे शाया करते रहे.

आज फिर साहित्य के पहियों की पटरियों पे नई कलम -उभरते हस्ताक्षर दौड़ने को तैयार है.. आपके प्यार की दरकार हमेशा की तरह रहेगी...

नए कलेवर और नयी साज -सज्जा के के साथ फिर से नई क़लम -उभरते हस्ताक्षर आपके हाथों में होगी.. 4 मई 2014 को हम फिर से अपने मेहमानों के बीच उस पौधे में पानी दे रहे हैं...

इसी सिलसिले में में आपसे लेख, व्यंग्य, नज़्म, ग़ज़ल, कवितायें, कहानी , उपन्यास ...कोई साहित्यिक शोध पत्र आपसे भेजने को कह रहा हूँ.. आप सब से उम्मीद है आप हमारा सहयोग करेंगे....वैसे ही जैसे आप इसके ई - संस्करण में करते रहे...

आप हमें अपनी रचनाएँ आज रात तक इस मेल पते पर भेजने का कष्ट करें -

nai.qalam@gmail.com

आपका
शाहिद 'अजनबी' और दीपक 'मशाल'
27.04.14 , '6'

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