Thursday, May 8, 2014

एक आम पत्र साथियों के नाम

प्यारे साथियों !

न कोई शाहीन सही , न तवील कारवां सही
मगर हौसलों का जखीरा तो है सही !!

-"अजनबी"

जब शरीर का कोई हिस्सा फोड़ा न रहकर नासूर बन जाये टू उसे काटकर शरीर से अलग कर देना चाहिऐ ताकि शेष शरीर को सुरक्षित रखा जा सके। दोस्तो मुझे मजबूरन कहना पद रहा है- "आजादी हासिल है मगर आजाद नहीं"। कहने को लोकतंत्र मगर तानाशाही फिर वही गुलामी के दिन बस फर्क इतना है जनता गोरों से थैलीशाहों, तुकद्खोरों जहरीले साँपों के हाथों में आ गयी है। और आम जनता उनके इशारों पर नाचने को मजबूर है। उनके हकों का खून हो रहा है, नाइंसाफी का तो कोई पैमाना ही नहीं है। जरुरत है एक ऐसे "इंकलाब" की जो कागजी न होकर हकीकत में कुछ करे।
जवानी का खून न हो जो हिलोरें मारे वक्त दो वक्त के लिए। एक ऐसा "इंकलाब" जो तानाशाहों को हिलाये , मजदूरों को हक़ दिलाये , अमीरी -गरीबी का फर्क मिटाए । आदमी में म्हणत , ज्ञान , और ईमानदारी पैदा करे।

" न होगा व्यर्थ हमारा संघर्ष अथक
उठेगी कभी चिंगारी से लपट !

क्रांति करना बहुत खातीं काम है । यह किसी एक आदमी की ताकत की वश की बाट नहीं है। आओ जुनूनी साथियो कंधे कंधे से कन्धा मिलाएं  और बुराईयां दूर करने की शपथ लें। हमें जरूरत है तुम्हारी ही , जरा झांक कर देखो अपने दिल में तुम्हारे दिल में भी स्वतंत्रता की आग धधक रही है । बुझा डालो उसे , तुम अकेले नहीं हो - हम सब तुम्हारे साथ है ।

" नींव के पत्ठेर बनो , अनजाने - अज्ञात
और अपने सीने पर बर्दाश्त करो खुशी -खुशी
विशाल भरी - भरकम निर्माण का बोझ
पा लो आश्रय कष्ट सहन में ,
मात करो ईर्ष्या शीर्ष पर जड़े पत्थर से
जिस पर उरेली जाती है सारी लौकिक प्रशंशा "

हमें लानी है जागरूकता कलम से , आवाज़ से । हमें समझाना है जेल में बंद उन कैदियों को जो चाहे - अनचाहे सजा कट राहे हैं । समझाना है नन्हें पौधे - बच्चों को , युवाओं को और ढल रही उम्र के इंसानों को जो वो अब तक न पा सके।

" अगर जरुरत हो , तो उग्र बनो उपरी तौर पर
लेकिन हमेशा नरम रहो अपने दिल में
अगर जरुरत हो , तो फुन्फ्कारो पर डसो मत
दिल में प्यार को जिंदा रखो और लड़ते रहो उपरी तौर पर "

" इंकलाब " शब्द का अर्थ भी कोरे शाब्दिक रूप में नहीं लगाना चाहिऐ .... क्रांति शब्द का अर्थ प्रगति के लिए परिवर्तन की भावना और आकांक्षा है। आओ और " इंकलाब " शब्द को हकीकत का जमा पहनाएं।
उठो ! जागो ! साथियों ! निकल पदों उस खोज में जिसका हमने आज आगाज़ किया है। हो सकता है तुमने ऐसे हजारों पर्चे देखे होंगे मगर आज जुनूनी विचारों के साथ हकीकतन स्वतंत्र होने के लिए " ग्लोबल केयर अर्गेनैजेसन " परिवार में आओ ।
हम शपथ लेते हैं की एक - दुसरे का साथ देंगे , अपने अधिकारों की रक्षा करेंगे , हम स्वतंत्रता और न्याय की मांग करते हैं ।
लहू में अगर जरा भी हरकत पैदा हुई तो हम समझेंगे अब तक हमारा लिखना सफल रहा नहीं तो ......! हरकत हुई - समझो तुम्हारे पास भी विचार हैं , मगर न जाने क्यों लड़ना नहीं चाहते तुम ! आओ लादेन ! आजादी की खातिर !!!

हमारा पहला आन्दोलन पर्चा है यह । सफलता की कामना करता हूँ ।

अंजाम उसके हाथ है आगाज़ करके देख
भीगे हुए परों से ही परवाज़ करके देख !!!

जी.सी.ओ।
- मानव कल्याण हेतु


आपका
शाहिद अजनबी
24.12.07, '1'

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