Thursday, May 8, 2014

इलाहाबाद



इलाहाबाद कभी रुकना नहीं हुआ.. गुजरना अक्सर होता है..पता नहीं क्या बात है इस शहर में जो अपनी तरफ खींचता है हमेशा .... फजाओं में किसी ने मुहब्बत की हवाएं घोल दी हों जैसे .. आपको यकीन नहीं होगा .. मैंने ऐसी खुशबुएँ कल खुद महसूस की हैं..हमेशा की तरह......
इलाहाबाद हमेशा -हमेशा तेरी फजाओं में ऐसी मुहब्बतों की खुशबुएँ रहें...

और हम ऐसे अहसासात दिल में महसूस करते रहें....

- शाहिद "अजनबी"
18.12.2013, '9'

जगजीत सिंह



आह!!!
एक ख्वाहिश थी - इस नाचीज़ की ग़ज़ल को जगजीत सा'ब अपनी आवाज़ बख्श दें. जो अब हमेशा- हमेशा के लिए अधूरी रह गयी. पिछले 8 साल पहले उनके नाम एक ख़त लिखा था, जो मैं पोस्ट भी न कर सका.. आज भी वो ख़त ज्यों का त्यों मेरे पास मौजूद है. मगर अफ़सोस अब उस ख़त को पढने वाला ही नहीं रहा.. एक टीस रह गयी दिल में. काश वो ख़त पोस्ट किया होता. खुद ग़म में रहकर हमें अपनी ग़ज़लों से जिंदा रखा आज वही नहीं है. अब और नहीं लिखा जा रहा है. आँखों में नमी आ गयी. वो मखमली आवाज़ और वो हमेशा यूँ ही जिंदा रहेंगे जैसे पहले थे.
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वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता..
किस घर में ख़ुशी होती है मातम नहीं होता.


- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
10.10.2011, '8'

भारतीय जन सेवा पार्टी


प्यारे साथियो,
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...

मुझे समझ नहीं आता की लोग राजनीति को इतनी घ्रणा की नज़र से क्यों देखते हैं .. मैं मानता हूँ की राजनीति पहले से थोड़ी बहुत नहीं बहुत ज्यादा गिरी है.. लेकिन सही मायनों में देखा जाए तो राजनीति आज भी वही है ... बदलाव आया है तो सिर्फ और सिर्फ राजनीति करने वालों में..

अक्सर बचपन में मज़ाक - मज़ाक में.. राजनीति के क्षेत्र में उतरने की बातें करते थे.. देश को बदलने की बातें करते थे.. महज कोई इसे मज़ाक और हास्यास्पद तरीके से ले सकता है.. ये उसका अपना निर्णय और उसका विचार है.. ..

किसी के ऐसे निर्णयों से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता ..

आज अजब संयोग है.. पिछले सालों से और हाल ही में कई महीनों से विचार करने के बाद आज शाम 4 घंटे चली कार्यकारणी की बैठक के बाद फैसला आया है ये हमें उतरना ही होगा.. उस भयंकर दलदल में जिसे लोग इंजिनियर और डॉक्टर न जाने किस अजीब नज़र से देखते हैं..

मेरे मित्रो.. ये हल नहीं है की कह दिया सिस्टम खराब है.. ये सोचना होगा की हमारी क्या भागीदारी है उस सिस्टम को सुधारने में जिसे हम और आप ख़राब कहते है..

और आखिर ये फैसला लिया गया की एक राजनीतिक पार्टी बनायी जाये जो संसद में सदन की गरिमा और मर्यादा का पालन करते हुए सही मायने जन सेवा कर सके और जन सेवक कहलाने का हक रख सके..
सो पार्टी का नाम तय हुआ है-

"भारतीय जन सेवा पार्टी"

अगर लहू है तो हरकत होनी चाहिए
वरना बहने को तो समंदर बहा करते हैं

आपकी साथ की उम्मीद करता हूँ--

- शाहिद "अजनबी"
15.08.2013, '7' 


नई क़लम का पुनः प्रकाशन ( हार्ड कॉपी )


नई क़लम - उभरते परिवार की ख़ुशी आप सब के साथ बाँट रहा हूँ... 14 साल पहले मैंने और मेरे अजीज़ दोस्त दीपक मशाल ने इस पत्रिका को निकाला था..हुआ यूँ , इंजीनियरिंग के चक्कर में मुझे मेरठ जाना पड़ गया और दीपक को. दिल्ली वैज्ञानिक होने के लिए..... उस वक़्त एक अंक निकल पाया फिर गाड़ी.. रुक गयी...

लेकिन साहित्य के लगाओ को कभी भी कम न कर पाया या यूँ कहें न हुआ. होना भी नहीं चाहिए था.. सुकून जो मिलता था, मिलता है.... तो उस सुकून को हम दोनों ने नई कलम- उभरते हस्ताक्षर ब्लॉग बनाकर ये सिलसिला चलता रहा ...आप सब लेखक मित्रों की रचनाएं समय- समय पे मिलती रहीं... और हम उसे नई कलम के मंच पे शाया करते रहे.

आज फिर साहित्य के पहियों की पटरियों पे नई कलम -उभरते हस्ताक्षर दौड़ने को तैयार है.. आपके प्यार की दरकार हमेशा की तरह रहेगी...

नए कलेवर और नयी साज -सज्जा के के साथ फिर से नई क़लम -उभरते हस्ताक्षर आपके हाथों में होगी.. 4 मई 2014 को हम फिर से अपने मेहमानों के बीच उस पौधे में पानी दे रहे हैं...

इसी सिलसिले में में आपसे लेख, व्यंग्य, नज़्म, ग़ज़ल, कवितायें, कहानी , उपन्यास ...कोई साहित्यिक शोध पत्र आपसे भेजने को कह रहा हूँ.. आप सब से उम्मीद है आप हमारा सहयोग करेंगे....वैसे ही जैसे आप इसके ई - संस्करण में करते रहे...

आप हमें अपनी रचनाएँ आज रात तक इस मेल पते पर भेजने का कष्ट करें -

nai.qalam@gmail.com

आपका
शाहिद 'अजनबी' और दीपक 'मशाल'
27.04.14 , '6'