दिन -ब-दिन इंसान सिमटता जा
रहा है ,उसने अपने आपको दायरों में बाँध लिया है। उसे पूरी दुनिया की तो
ख़बर है मगर अपने पडोसी की परेशानी का अहसास नहीं। वो सब कुछ एक स्क्रीन पर
पा लेना चाहता है। सब कुछ भ्रम और सिर्फ़ भ्रम जहाँ भरम लफ्ज़ के कोई
मायने ही नहीं रह जाते हैं।
- शाहिद मंसूरी
08.08.09, '4'
- शाहिद मंसूरी
08.08.09, '4'
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